घर
एक साल एक महीना और कुछ घंटे!
तक़रीबन एक इसी वक़्त एक साल पहले में बॉम्बे में आया था। पहली बार... हमेशा के लिए ! हाथ में न तोह डिग्री थी, न नौकरी, न कहा रहने उसका ठिकाना। कुछ लोग जानते थे बस ! एक उम्मीद थी कुछ बन के लौटेंगे। वहा डटे रहे, लड़े, रोये, भागे और आज एक नौकरी, थोडे बहोत पैसे और कुछ सपने हे जिसको डायरी की 'बकेट लिस्ट' नाम के पन्ने से मिटा दिए हे। बम्बई शहेरने दिया भी बहोत कुछ मुझे, एक प्रेमिका की तरह मेरी देखभाल करती रही, में रूठता तो मानती गयी और में भटकता तोह रास्ता दिखाती गई।
पर एक चीझ की कमी आज भी महसूस होती हे,
बड़ा घर, जैसे गावो में हुवा करता था, वोह क्रिकेट खेलने की झमीन और आँगन में एक झूला, वोह बगीचे, वोह छत जहासे कभी सारे आसमान के तारे गीन लेते थे।
यहाँ यह सब मिलाना मानो चाँद को जाके छूके आने जैसी बात है,बिलकुल बकवास।
बॉम्बे में आप को सब मिल जायेगा पर, जगह और इससे ज्यादा अच्छी जगह मिलाना आपकी नानी याद दिला दे सकती हे, अगर आप को प्राइवेसी चाहिए और आपको साउथ बॉम्बे में रहना हे तोह आप का बैंक बैलेंस तगड़ा होना चाहिए, जहाँ लोग सिर्फ रहने की डिपोसिट लाखो में लेते हे, रेंट तोह बहुत दूर की बात हे, और खुद का घर तोह पूछिए ही मत !! और अगर आप को प्रवासी चाहिए पर आप के पास पैसे नहीं हे तोह आपको जाना पड़ता हे नार्थ में। जो काम करने की जगह या तोह कहे पुराना बॉम्बे से काफी दूर हे। या तोह ट्रेवल करो यातो पैसा ले के आओ।
सुना हे बिल्ली या सात घर बदलती बदलती हे, यहाँ आकर मेरी हालत भी कुछ ऐसी ही थी। एक के बाद एक घर।
संजू बाबा की भाषा में कहा जाये तोह साउथ बॉम्बे की शानदार हवेलियों में भी रहा हु और नालासोपारा की एक चाल में जहा पुरे चोल में टॉयलेट कॉमन था। पैसे मिलते गए वेसे अरमान बढ़ते गए और आखिर दादर आके संभला हु।
एक छोटा सा 1 रूम किचन 1 रूममें दो लोग किचन में एक।
हा बोलने में शर्म तोह आती हे की खुद के 2 मझिला के खली बंगले को छोड़ कर एक किचेन में सोना पड़ता हे। कभी चीड़ भी जाता हूं, में अपनी सैलरी का आधा पैसा भाड़े के लिये देता हूं, फिर भी ऐसी झिन्दगी!
पर शायद इसी चीज़ मुझे बहोत कुछ सीखा जाती हे, जो शायद बड़े बंगाले में कभी सीखने को ना मिले, हमारा घर शायद छोटा ही सही पर दिल आज भी बड़ा हे। कसीके घर से मिठाई आती हे तोह वोह सब के लिए होती हे, हर रात अपने घर की बाते, अपनी ऑफिस की फ़्रस्ट्रेशन बाते, सब बाते चूले में चढ़कर पक जाती हे।
पर शायद इसी चीज़ मुझे बहोत कुछ सीखा जाती हे, जो शायद बड़े बंगाले में कभी सीखने को ना मिले, हमारा घर शायद छोटा ही सही पर दिल आज भी बड़ा हे। कसीके घर से मिठाई आती हे तोह वोह सब के लिए होती हे, हर रात अपने घर की बाते, अपनी ऑफिस की फ़्रस्ट्रेशन बाते, सब बाते चूले में चढ़कर पक जाती हे।
ऐसा नहीं हे हम थक गए हे, हम सब इस पिंजरे से भाग के बांद्रा में बेंड स्टेण्ड के पास घर तोह लेना चाहते हे पर नाचाहते हुई भी अब इस पिझरे से प्यार कर बैठे हे। लैंडलॉर्ड को अपना यार और इसी छोटी सी दुनिया को अपना सबकुछ बना के बैठे हे।
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