सोनपापडी।


मेरी नोवी सालगिरह थी, शाम का वक़्त था और में खिडकी के बहार आस लगाए बैठा रहा था। पापा मेरे हर जन्मदिन पे बैंक से आते हुए सोनपापडी लाते थे। मम्मी बोलती थी पार्टी करेंगे तोह लोग आएंगे और वोह लोग मेरी सोनपापडी खा जेयेंगे, में अपनी सोनपापडी किसी से बाटना नही चाहता था तोह में किसीको बुलाता भी नही था।

तभी से छोटी सी मोटर चाल के मैदान आके रुकी दूसरी बार चाल में कोई मोटर आई थी। रिकू के मामा लाये थे मोटर एक दिन पर आज उसमें से उसके मामा नही बाबा निकले।

गाड़ी आने पर लोगोने आस पास बड़ी भीड़ मचा दी थी। बच्चे बाबा की गाड़ी पर चल रहे थे। मम्मी भी दौड़के बाहर आई, पूजा की थाली ले के, हमने गाड़ी की पूजा की।

मम्मी, पापा बहोत खुश थे, मम्मी चाल वाली दीदी से तोह बात भी कर रही थी,

"सरकारी बेक में काम करते है ना वही से ली है एक दम नई, में तोह बोली भी पुरानी ले लेते है पर येह माने तोह दो दिवाली से पैसे इकट्ठे करने में लगे हुए है बोलै लेंगे तोह नई लेंगे और बैंक से पैसे भी मिल गये थोड़ी आसानी से तोह ले ही आये चिंटू के जन्मदिन पर!"

मेने बाबा की आखो में देखा उनकी आखो में वही चमक थी जो जैसी मुझे पढ़ता देख, अक्सर रहा करती है। में बाबा के पास गया उनकी कहा खमीज़ खिच ली और पूछा,

"बाबा कहा है मेरी सोनपापडी?"

वोह भूल गए थे, वोह अक्सर चीज़े भूल जाते थे, में नाराझ हो गया, बाबा ने मुझे उठाया और बोले,

"आज बेटा राजा को बाहर खाने के लिए ले जाते है नई गाड़ी में! वही से घुमके आते वक़्त ले लेंगे तुम्हरी सोनपापडी।"

रात को हम सब तैयार हो गए, हमारे पसंदिता जगह पे वोही टेबल पे वोही खाना मंगाया गया जो हर वक़्त खाते थे। में वहा से जाना चाहता था, मेरा मन नही लग रहा था, मेने पूरा खाया भी नही, माँ ने देखा वोह नाराज़ हो गयी और मुझे डाट दिया।

फिर तोह बस मेने भी जिद पकड़ ली में अब कभी सोनपापडी नही खाऊंगा। घर जाते वक़्त बाबा ले कर भी आये मुझे बहोत मनाया भी, पर मेरे नही मानने पर नई गाड़ी की आगे वाले लाकर में डाल दिया और बोले यह अभी यही रहेगी अगर चिंटू नई खायेगा तोह कोई नही खायेगा।

में गाड़ी में घर पहोचे में अभी में गुस्से में ही था, में गुस्से में सो गया, थोड़ी देर बाबा आये और वोह भी मेरे सर पे हाथ फिरके सो गए।

मेरी आँखे जब खुली तब लोगो की आवझे आ रही थी, कोई चीख रहा था कोई चिल्ला रहा था! में आँखे मलते हुई बाहर निकलके खिड़की से देखा तोह कुछ लोग चाल में तोड़ फोड़ कर रहे थे!

चाल के बाहर से लोग चीखते चिल्लाते सब कुछ तबाह कर रहे थे बोल रहे थे, सरकारी नोकरी हमारा हक है हमे हमारा हक मिल नही जाता हम चुप नही बैठेंगे और ऐसे कहते ही उन्होंने बाबा की नई गाड़ी मे आग लगा दी।

बाबा को माँ ने पकड़ लिया, बाबा भागने की पूरी कोशिश कर रहै थे पर माँ ने उस रात उनको बाहर निकलने नही दिया, मेरी सोनपापडी का डब्बा अभी भी बाहर पड़ा था गाड़ी में, मेने बाहर भागने की कोशिश की पर माँ ने बाहर जा कर वहा से दरवाजा बंध कर दिया।

में खिड़की से सब देख रहा था, बाबा दुसरी खिड़की पे खड़े हो कर चिल्ला रहे है उन्होंने उसे तोड़के बाहर जाने की बहोत कोशिश की, वोह रोये, वोह झटपटाये और फिर निशब्द बैठ गए..

उस दिन मुझे पता चला,

'बाबा को भी सोनपापडी बहोत पसंद थी।'


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