कहा गए वोह सारे गीतकार?
अगर आप पिछले कुछ वक्त से गाना सुन रहे होंगे तो शायद आप ने भी यह अनुभव किया रहेगा की, अक्सर ट्रेंडिंग में टॉप आने वाले गाने कुछ महीनो के बाद जैसे गायब ही हो जाते है, जैसे कुछ बज तो रहा है पर उसके मायने कुछ भी नहीं, करुणता ये हे की जश्न मानाने वाले [पार्टी सॉन्ग्स] के कुछ गानों को छोड़ दिया जाए तोह पता चलेगा की नया कोई भी ऐसा गाना नहीं हे जो आपके जज्बातों को खुल के बया कर सके, बढ़ते रीमिक्स के चलन को देख कर तो यह ही लगता हे की आज की पीढ़ी को भी अपने ख्याल महसूस करने के लिए पुराने गानो का सहारा लेना पड़ता हे, तभी ये सवाल मन में आता हे कहा गए वोह सारे गीतकार?
संगीत के ज्ञानी न होने के कारण उस पर टिपण्णी नहीं करते, पर आजकल जिस तरह के शब्द लिखे जाते हे वोह देख के लगता हे सारे अच्छे गीतकार कही समाधी लगाए बैठ गए है। मेरी एक मित्र मुझे मज़ाक में कहती थी के पहले के ज़माने में गाने होते थे की 'चौदहवीं का चाँद हो, या आफ़ताब हो, जो भी हो तुम खुदा कि क़सम, लाजवाब हो' तो प्रेमिका भी बिना जानेबुजे घर छोड़ के आ जाती थी, अब क्या करोगे, ये गाओंगे की ' ये लड़की पागल है *50!' ऐसा किया तो प्रेमिका का आने का पता नहीं पर उसके प्रीमियम चप्पल से कुटाई पक्का होगा।
भारतीय संगीत इंडस्ट्री पे बड़े आरोप लगते, बोलै जाता बी ग्रेड म्युझिक हे, काफी चोरी भी की गई हे, वेस्टर्न गानो को चेपा है पर एक चीज़ में गर्व से कहूंगा की उसकी गीतकारी होती थी वोह बेमिसाल रही हे। भारतीय सिनेमा में ऐसे ऐसे गीतकार दिए है की जिसकी कोई कल्पना भी ना कर सके। आनंद बक्षी, साहिर लुधयानवी, शैलेन्द्र, मजरुम सुलतानपूरी, कैफ़ी आझमी, गुलझार, जावेद अख्तर, वरुण गोवर, अमिताभ भट्टाचार्य, स्वानंद किरकिरे और एक से एक बढ़कर एक गीतकार जो गानो में जीवन का अर्थ बता दे, वोह प्यार के ऊपर लिखे तोह लगे इससे हसीन कुछ और हो नहीं सकता, वोह दर्द पे लिखे तोह आखे अपने आप नम हो जाए, कुछ गाने सुनो तोह जीवन जीने की नै चाह उठने लगे, या कुछ गाने ऐसे की वोह उसकी मस्ती में आप को मस्त बना दे। वहाँ से आज के गांव की दुदर्शा कितनी दर्दभरी हे लोग ही समज पायेंगे।
और में वोह आदमी नहीं हूँ, जिसका जीवन इतिहास के पन्नो से ही चलता है, उसका सब कुछ बीते कल में ही बसा है, में ऐसा आदमी नहीं हूँ जो हर पार्टी में कहता फिरू की नए गानो में वोह बात नहीं जो पुराने गानो में थी। में भी २१ मी सदी में पला बड़ा हूँ , मेने भी बड़े होते उन गानो को दिल से चाहा है, आज भी में कई नए आर्टिस्ट को खोजता रहता हूँ जिनके शब्दों में वोह सच्च्चाई दिखे जिसे मुजे ढूढ़ना है कही हद तक कुछ संगीतकार मिले भी है मुझे जैसे डिवाइन, भरत चौहान, सीड श्रीराम पर ये बिचारे मुश्किल से चार्ट में आगे आ पाते हे। उनके सामने एक 'जानामाना' गीतकार आता हे, जो ट्रेंडिंग चल रहा हे उस पर बेतुका लिख के यूट्यूब में लाखो व्यूज़ ले जाता है, कभी-कभी लगता हे की में वक्त से तेज बूढ़ा हो रहा हूँ उसीके वजह से मुझे यह लोग समझ में नहीं आते। आज कल प्रचलित गाना हे ऐसा सुन कर ही वोह गाना सुनने का मन नहीं करता।
अच्छा कुछ लोग बोलते हे की वैसे गाने लोगो को समझ में नहीं आएंगे की जैसे की वरुण ग्रोवर का 'कस्तूरी रे' या स्वानंद किरकिरे के 'रात हमारी तो'! उन लोगो को सिर्फ उतना केहना चाहूंगा की मेने लोगो को चाय की टपरी पे बैठे आंधी के गाने सुनते हुए देखा हे, टेक्सी में साहिर साहब का गाना आते ही आवाझ बढ़ा देने वाले ड्राइवर को भी देखा है और आज भी कही लोगो को बारिश में 'कोई लड़की हे जब वोह हसती हे बारिश होती हे' पर नाचते देहा है। कम से कम लोगो के नाम पे कचरा बनाना बंध कर दीजिये। दुःख बहोत होता हे, उन नए कलाकार के लिए जो जी जान लगा देते है गाने आप तक पहोचाने के लिए पर क्या करे कुछ कर भी नहीं सकते, तभी में मेरे नाना का पसंदिता गाना बजा देता हूँ,
"किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार
जीना इसी का नाम है...
...के मर के भी किसी को याद आयेंगे
किसी के आँसुओं में मुस्कुरायेंगे
कहेगा फूल हर कली से बार बार
जीना इसी का नाम है"
और याद करता रहता हूँ की 'शैलेन्द्र' तुम अमर हो।
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